माता सुमित्रा: मर्यादा और करुणा की प्रतिमूर्ति

माता सुमित्रा भारतीय पौराणिक कथा रामायण की एक महत्वपूर्ण पात्र हैं। वे अयोध्या के राजा दशरथ की तीसरी पत्नी और लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न की माता थीं। सुमित्रा का व्यक्तित्व करुणा, धैर्य, और त्याग का प्रतीक है, और उनकी भूमिका रामायण में न केवल एक आदर्श पत्नी और माता की है, बल्कि उन्होंने अपने पुत्रों को धर्म और कर्तव्य के प्रति समर्पित होने का मार्ग भी दिखाया।

सुमित्रा का जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि

माता सुमित्रा का जन्म एक प्रतिष्ठित और सम्मानित कुल में हुआ था। उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिलती, लेकिन यह निश्चित है कि वे अपने समय की एक बुद्धिमान और धर्मपरायण महिला थीं। उनका विवाह राजा दशरथ से हुआ और वे अयोध्या की तीन प्रमुख रानियों में से एक बन गईं।

सुमित्रा के पुत्र: लक्ष्मण और शत्रुघ्न

सुमित्रा के दो पुत्र थे—लक्ष्मण और शत्रुघ्न। सुमित्रा ने अपने दोनों पुत्रों को मर्यादा, कर्तव्य, और धर्म का पाठ पढ़ाया। लक्ष्मण और शत्रुघ्न, दोनों ही अपने भाइयों श्रीराम और भरत के प्रति अत्यधिक प्रेम और भक्ति रखते थे। लक्ष्मण ने तो जीवनभर राम के साथ उनकी सेवा और सुरक्षा में अपना जीवन समर्पित कर दिया।

राम के वनवास में सुमित्रा की भूमिका

राम के वनवास के समय सुमित्रा का व्यक्तित्व विशेष रूप से उभरकर सामने आता है। जब लक्ष्मण ने यह निश्चय किया कि वे अपने भाई राम के साथ वनवास जाएंगे, सुमित्रा ने उन्हें न केवल जाने की अनुमति दी, बल्कि उनका मनोबल भी बढ़ाया। उन्होंने लक्ष्मण से कहा कि वे राम और सीता की सेवा करें और उन्हें अपने जीवन का उद्देश्य बनाएं। यह सुमित्रा के त्याग और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक है, जिन्होंने अपने पुत्र को बिना किसी स्वार्थ के धर्म और परिवार के प्रति समर्पित किया।

उनके द्वारा लक्ष्मण को दिए गए निर्देश इस बात का प्रमाण हैं कि सुमित्रा अपने पुत्रों के माध्यम से धर्म और मर्यादा का पालन करना चाहती थीं। उन्होंने लक्ष्मण से कहा कि वे राम को अपना कर्तव्य समझें और उनके साथ सदा समर्पण और निष्ठा के साथ रहें।

सुमित्रा का धैर्य और त्याग

रामायण के दौरान, सुमित्रा का चरित्र धैर्य और त्याग का प्रतीक बना रहा। उन्होंने न केवल अपने पुत्र लक्ष्मण को राम की सेवा में भेजा, बल्कि स्वयं भी अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए परिवार और राज्य की मर्यादा को बनाए रखा। सुमित्रा का धैर्य और त्याग उन्हें भारतीय संस्कृति में एक आदर्श माँ के रूप में प्रतिष्ठित करता है, जो अपने पुत्रों को धर्म, कर्तव्य, और सेवा का मार्ग दिखाती है।

सुमित्रा की महत्ता

माता सुमित्रा का जीवन यह सिखाता है कि एक माँ का कर्तव्य केवल संतान का पालन-पोषण करना ही नहीं है, बल्कि उन्हें जीवन के उच्च आदर्शों के प्रति समर्पित करना भी है। उन्होंने अपने पुत्रों को न केवल शारीरिक रूप से मजबूत बनाया, बल्कि उनके भीतर कर्तव्य और धर्म के प्रति असीम प्रेम भी उत्पन्न किया।

रामायण में सुमित्रा का योगदान यह सिद्ध करता है कि वे केवल एक रानी और माँ ही नहीं, बल्कि एक ऐसी स्त्री थीं जो जीवन के हर पहलू में कर्तव्यनिष्ठा और धैर्य की मूर्ति बनी रहीं। उनके जीवन से हमें सिखने को मिलता है कि सच्चा प्रेम और समर्पण केवल अपने परिवार के प्रति नहीं, बल्कि समाज और धर्म के प्रति भी होना चाहिए।

माता सुमित्रा की गाथा नारी शक्ति, त्याग, और धैर्य का अद्वितीय उदाहरण है, जो आज भी हमें प्रेरित करती है।

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